Friday, May 2, 2014

प्रार्थना : हे प्रभो! आनंददाता!! ज्ञान हमको दीजिये।

हे प्रभो! आनंददाता!!

हे प्रभो! आनंददाता!! ज्ञान हमको दीजिये।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये ||
हे प्रभो! आनंददाता!! ज्ञान हमको दीजिये।…


लीजिये हमको शरण में हम सदाचारी बनें |
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें ||
हे प्रभो! आनंददाता!! ज्ञान हमको दीजिये।…


निंदा किसीकी हम किसीसे भूल कर भी न करें |
ईर्ष्या कभी भी हम किसीसे भूल कर भी न करें ||
हे प्रभो! आनंददाता!! ज्ञान हमको दीजिये। ………


सत्य बोलें झूठ त्यागें मेल आपस में करें |
दिव्य जीवन हो हमारा यश तेरा गाया करें ||
हे प्रभो! आनंददाता!! ज्ञान हमको दीजिये। ………


जाये हमारी आयु हे प्रभु ! लोक के उपकार में |
हाथ ड़ालें हम कभी न भूलकर अपकार में ||
हे प्रभो! आनंददाता!! ज्ञान हमको दीजिये।………


कीजिये हम पर कृपा ऐसी हे परमात्मा !
मोह मद मत्सर रहित होवे हमारी आत्मा ||
हे प्रभो! आनंददाता!! ज्ञान हमको दीजिये। ………


प्रेम से हम गुरुजनों की नित्य ही सेवा करें |
प्रेम से हम संस्कृति की नित्य ही सेवा करें ||
हे प्रभो! आनंददाता!! ज्ञान हमको दीजिये।…


योगविद्या ब्रह्मविद्या हो अधिक प्यारी हमें |
ब्रह्मनिष्ठा प्राप्त करके सर्वहितकारी बनें ||
हे प्रभो! आनंददाता!! ज्ञान हमको दीजिये।…

मन, मस्तिष्क और शरीर की औषधि है प्राणायाम

योग के 8 अंगों में प्राणायाम का स्थान चौथे नंबर पर आता है।प्राणायाम को आयुर्वेद में मन, मस्तिष्क और शरीर की औषधिमाना गया है। चरक ने वायु को मन का नियंता एवं प्रणेता माना है। आयुर्वेद अनुसार काया में उत्पन्न होने वाली वायु है उसके आयाम अर्थात निरोध करने को प्राणायाम कहते हैं। प्राणायामकी शुरुआत : प्राणायाम करते समय 3 क्रियाएं करते हैं- 1.पूरक, 2. कुंभक और 3. रेचक। इसे ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं।

(1) पूरक- अर्थात नियंत्रित गति से श्वास अंदर लेने की क्रिया कोपूरक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब भीतर खींचते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।

(2) कुंभक- अंदर की हुई श्वास को क्षमतानुसार रोककर रखने की क्रिया को कुंभक कहते हैं। श्वास को अंदर रोकने की क्रिया को आंतरिक कुंभक और श्वास को बाहर छोड़कर पुन: नहीं लेकर कुछ देर रुकने की क्रिया को बाहरी कुंभक कहते हैं। इसमें भी लय और अनुपात का होना आवश्यक है।

(3) रेचक- अंदर ली हुई श्वास को नियंत्रित गति से छोड़ने की क्रिया को रेचक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब छोड़ते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।

पूरक, कुंभक और रेचक की आवृत्ति को अच्छे से समझकर प्रतिदिन यह प्राणायाम करने से कुछ रोग दूर हो जाते हैं। इसके बाद आप भ्रस्त्रिका, कपालभाती, शीतली, शीतकारी और भ्रामरी प्राणायाम को एड कर लें। योग सूत्र, योग दर्शन, योगोपनिषद, जबालदर्शनोपनिषद और योगकुडल्योपनिषद आदि योग से संबंधित ग्रंथों में इस बात की पुष्टि होती है किप्राणायाम के नियमित अभ्यास से सभी तरह के रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है। 

योगकुडल्योपनिषद के अनुसार प्राणायाम से गुल्म, जलोदर, प्लीहा तथा पेट संबंध सभी रोग पूर्ण रूप से खत्म हो जाते हैं।प्राणायाम द्वारा 4 प्रकार के वात दोष और कृमि दोष को भी नष्ट किया जा सकता है। इससे मस्तिष्क की गर्मी, गले के कफ संबंधी रोग, पित्त-ज्वर, प्यास का अधिक लगना आदि रोग भी दूर होते हैं।

नाड़ी शोधन के लाभ : नाड़ी शोधन के नियमित अभ्यास से मस्तिष्क शांत रहता है और सभी तरह की चिंताएं दूर हो जाती हैं। 3 बार नाड़ी शोधन करने से रक्त संचार ठीक तरह से चलने लगता है। इसके नियमित अभ्यास से बधिरता और लकवा जैसे रोग भी मिट जाते हैं। इससे शरीर में ऑ‍क्सीजन का लेवल बढ़ जाता है।

भस्त्रिका के लाभ : प्रतिदिन 5 मिनट भस्त्रिका प्राणायाम करने से रक्त शुद्ध हो जाता है। सर्दी-जुकाम और एलर्जी दूर हो जाती है। मस्तिष्क को फिर से उर्जा प्राप्त होती है।

कपालभाती प्राणायाम : कपालभाती से गैस, कब्ज, मधुमेह, मोटापा जैसे रोग दूर रहते हैं और मुखमंडल पर तेज कायम हो जाता है।

बाह्म प्राणायाम : 5 बार बाह्य प्राणायाम करने से मन की चंचलता दूर हो जाती है। इसके अलावा उदर रोग दूर होकर जठराग्नि प्रदीप्त हो जाती है।

अनुलोम-विलोम : 10 मिनट अनुलोम-विलोम करने से सिरदर्द ठीक हो जाता है। नकारात्मक चिंतन से चित्त दूर होकर आनंद और उत्साह बढ़ जाता है।
स्त्रोत : आज की खबर, २१ मार्च, २०१४ 

दैनिक योग का अभ्यास क्रम, स्वस्थ जीवन के लिए

एक-एक योग की प्रक्रिया और एक-एक जड़ी-बूटी पर हमारे पूवर्जों ने, ऋषि-मुनियों ने करोड़ों-लाखों व हजारों वर्षों तक निरन्तर शोध व अनुसंधान किया तथा उस जड़ी-बूटी से होने वाले लाभों के बारे में हमें बताया।

प्रारम्भ : तीन बार ॐ का लम्बा उच्चारण करें।

गायत्री-महामन्त्र : ॐ भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।

महामृत्युञजय-मन्त्र : ॐ ´यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माsमृतात्।।

संकल्प-मन्त्र : ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्वि नावधीतमस्तु। मा विद्विषावहै।

प्रार्थना-मन्त्र : ॐ असतो मा सद् गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्माsमृतं गमय। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।

सहज-व्यायाम : यौगिक जोगिंग के 12 अभ्यास (समय-लगभग 5 मिनट)

सूर्य-नमस्कार : 3 से 5 अभ्यास (समय- 1 से 2 मिनट)

भारतीय-व्यायाम : मिश्रदण्ड अथवा युवाओं के लिये बारह प्रकार की दण्ड व आठ प्रकार की बैठकों का पूर्ण अभ्यास (समय-लगभग 5 मिनट)

मुख्य-आसन : बैठकर करने वाले आसन-मण्डूकासन, (भाग 1 व 2) शशकासन, गोमुखासन, वक्रासन, पेट के बल लेटकर करने वाले आसन-मकरासन, भुजंगासन, (भाग 1, 2 व 3) शलभासन (भाग 1, 2),

पीठ के बल लेटकर करने वाले आसन : मर्कटासन- (1, 2, 3) पवनमुक्तासन (भाग 1 व 2) अर्द्धहलासन , पादवृत्तासन, द्वि-चक्रिकासन (भाग 1 व 2) व शवासन ( योगनिद्रा)। (समय-10 से 15 मिनट, प्रत्येक आसन की आवृति 3 से 5 अभ्यास)

सूक्ष्म-व्यायाम : हाथों, पैरों, कोहनी, कलाई, कंधों के सूक्ष्म व्यायाम व बटर∂लाई इत्यादि लगभग 12 प्रकार के सूक्ष्म व्यायाम, प्राणायाम के पहले अथवा बीच में भी किये जा सकते हैं। प्रत्येक अभ्यास की आवृति 5-१० अभ्यास (समय -लगभग 5 मिनट)

मुख्य-प्राणायाम एवं सहयोगी क्रिया :

1. भस्त्रिका-प्राणायाम: लगभग 5 सेकण्ड में धीरे-धीरे लम्बे गहरे श्वास लेना व छोड़ना - कुल समय 3 से 5 मिनट।

2. कपालभाति-प्राणायाम: 1 सेकण्ड में एक बार झटके के साथ श्वास छोड़ना- कुल समय- 15 मिनट।

3. बाह्य-प्राणायाम: त्रिबन्ध के साथ श्वास को यथाशक्ति रोककर रखना- 3-5 अभ्यास।

4. अग्निसार-क्रिया: मूल-बन्ध के साथ पेट को अन्दर की ओर खींचना व ढीला छोड़ना - 3-5 अभ्यास।

5. उज्जायी प्राणायाम: गले का आकुञचन करते हुए श्वास लेना व बाईं नासिका से छोडना -3-5 अभ्यास ।

6. अनुलोम-विलोम प्राणायाम: दाईं नासिका बन्द करके बाईं से श्वास लेना व बाईं को बन्द करके दाईं से श्वास छोड़ने का क्रम- एक क्रम का समय 10 सेकण्ड -कुल अभ्यास समय-15 मिनट।

7. भ्रामरी-प्राणायाम: आँखों व कानों को बन्द करके नासिका से भ्रमर की तरह गुंजन करना 3-7 अभ्यास

8. उद्गीथ-प्राणायाम: दीर्घ स्वर में ओम का उच्चारण करना 3 से 7 अभ्यास।

9. प्रणव-प्राणायाम (ध्यान): आँखें बन्द करके, ध्यान मुद्रा में ध्यान करना -समय- 1 मिनट।

देशभक्ति-गीत : समय लगभग 2 मिनट

स्वाध्याय व चिन्तन : जीवन दर्शन, व्यवस्था-परिवर्तन या हमारे सपनों का भारत पुस्तिका का वाचन (समय- 2 से 5 मिनट)

एक्यूप्रेशर : समय की उपलब्धता अनुसार।

समापन : सिंहासन, हास्यासन, 3-3 अभ्यास (समय- 2 मिनट)

शान्ति-पाठ : ॐ द्यौः, शांति-रंतरिक्ष शांतिः पृथवी,.. शांति-राप,.. शांति-रोषधयः शांति वनस्पतयः, शांति-विश्वेदेवा, शांति-ब्रह्मा, शांति सर्वा शांति शांति-रेव, शांति सा मा शांति रेधि ॐ शांति, शांति, शांति

विशेष : योगाभ्यास के क्रम में व्यायाम, सूक्ष्म-व्यायाम व आसनों को पहले या बाद में भी किया जा सकता है। शीतकाल में व्यायाम व आसन पहले तथा प्राणायाम बाद में एवं ग्रीष्म काल में प्राणायाम पहले करवाकर व्यायाम व आसन बाद में कर सकते हैं। 

Thursday, May 1, 2014

प्राणायाम के प्रकार

योग के आठ अंगों में से चौथा अंग है प्राणायाम। प्राणायाम करते या श्वास लेते समय हम तीन क्रियाएँ करते हैं- 1.पूरक 2.कुम्भक 3.रेचक। इसे ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं। अर्थात श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। अंतर रोकने को आंतरिक कुम्भक और बाहर रोकने को बाह्म कुम्भक कहते हैं।

(1) पूरक:- अर्थात नियंत्रित गति से श्वास अंदर लेने की क्रिया को पूरक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब भीतर खिंचते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।

(2) कुम्भक:- अंदर की हुई श्वास को क्षमतानुसार रोककर रखने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं। श्वास को अंदर रोकने की क्रिया को आंतरिक कुंभक और श्वास को बाहर छोड़कर पुन: नहीं लेकर कुछ देर रुकने की क्रिया को बाहरी कुंभक कहते हैं। इसमें भी लय और अनुपात का होना आवश्यक है।

(3) रेचक:- अंदर ली हुई श्वास को नियंत्रित गति से छोड़ने की क्रिया को रेचक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब छोड़ते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।

प्राणायाम के प्रमुख प्रकार (kind of pranayama) : 

1.नाड़ीशोधन, 2.भ्रस्त्रिका, 3.उज्जाई, 4.भ्रामरी, 5.कपालभाती, 6.केवली, 7.कुंभक, 8.दीर्घ, 9.शीतकारी, 10.शीतली, 11.मूर्छा, 12.सूर्यभेदन, 13.चंद्रभेदन, 14.प्रणव, 15.अग्निसार, 16.उद्गीथ, 17.नासाग्र, 18.प्लावनी, 19.शितायु (shitau) आदि।

इसके अलावा भी योग में अनेक प्रकार के प्राणायामों का वर्णन मिलता है जैसे-

1.अनुलोम-विलोम प्राणायाम
2.अग्नि प्रदीप्त प्राणायाम
3.अग्नि प्रसारण प्राणायाम
4.एकांड स्तम्भ प्राणायाम
5.सीत्कारी प्राणायाम
6.सर्वद्वारबद्व प्राणायाम
7.सर्वांग स्तम्भ प्राणायाम
8.सम्त व्याहृति प्राणायाम
9.चतुर्मुखी प्राणायाम,
10.प्रच्छर्दन प्राणायाम
11.चन्द्रभेदन प्राणायाम
12.यन्त्रगमन प्राणायाम
13.वामरेचन प्राणायाम
14.दक्षिण रेचन प्राणायाम
15.शक्ति प्रयोग प्राणायाम
16.त्रिबन्धरेचक प्राणायाम
17.कपाल भाति प्राणायाम
18.हृदय स्तम्भ प्राणायाम
19.मध्य रेचन प्राणायाम
20.त्रिबन्ध कुम्भक प्राणायाम
21.ऊर्ध्वमुख भस्त्रिका प्राणायाम
22.मुखपूरक कुम्भक प्राणायाम
23.वायुवीय कुम्भक प्राणायाम
24.वक्षस्थल रेचन प्राणायाम
25.दीर्घ श्वास-प्रश्वास प्राणायाम
26.प्राह्याभ्न्वर कुम्भक प्राणायाम
27.षन्मुखी रेचन प्राणायाम
28.कण्ठ वातउदा पूरक प्राणायाम
29.सुख प्रसारण पूरक कुम्भक प्राणायाम
30.नाड़ी शोधन प्राणायाम व नाड़ी अवरोध प्राणायाम 
- अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

उज्जायी प्राणायाम

उज्जायी प्राणायाम

सुखासन,सिद्धासन,पद्मासन,वज्रासन में बैठें। सीकुडे हुवे गले से सास को अन्दर लेना है|

लाभ
  1. थायराँइड की शिकायत से आराम मिलता है|
  2. तुतलाना, हकलाना,ये शिकायत भी दूर होती है|
  3. अनिद्रा,मानसिक तनाव भी कम करता है|
  4. टी•बी•(क्षय)को मिटाने मे मदद होती है|
  5. गुंगे बच्चे भी बोलने लगेंगे|
स्त्रोत : विकीपीडिया 

अग्नीसार क्रिया

अग्नीसार क्रिया

सुखासन,सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। यह क्रिया मे कपालभाती प्राणायाम जैसा नही है बार-बार सांस बाहर नही करनी है। सास को पुरी तरह बाहर नीकल के बाद बाहर ही रोक के पेट को आगे पीछे करना है |

लाभ
  1. कब्ज, अँसीडीटी,गँसस्टीक, जैसी पेट सभी समस्या मिट जाती है|
  2. हर्निया पुरी तरह मिट जाता है|
  3. धातु,और पेशाब के संबंधीत सभी समस्या मिट जाता है|
  4. मन की एकाग्रता बढेगी|
  5. व्यंधत्व से छुट्कार मिल जायेगा|
स्त्रोत : विकीपीडिया 

प्रणव प्राणायाम

प्रणव प्राणायाम

सुखासन,सिद्धासन,पद्मासन,वज्रासन में बैठें। और मन ही मन मे एकदम शान्त बैठ के लंबी सास लेके ओउम का जाप करना है|
लाभ
  1. पॉझीटीव्ह एनर्जी तैयार करता है|
  2. सायकीक पेंशनट्स को फायदा होता है|
  3. मायग्रेन पेन, डीप्रेशन और मस्तिषक के सम्बधित सभी व्यधिओको मिटाने के लिये|
  4. मन और मस्तिष्क की शांति मिलती है|
  5. ब्रम्हानंद की प्राप्ती करने के लिये|
  6. मन और मस्तिष्क की एकाग्रता बढाने के लिये|

उद्गीथ प्राणायाम

उद्गीथ प्राणायाम

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें और लंबी सास लेके मुँह से ओउम का जाप करना है।

लाभ
  1. पॉझीटीव्ह एनर्जी तैयार करता है। 
  2. सायकीक पेंशनट्स को फायदा होता है। 
  3. मायग्रेन पेन, डीप्रेशन,ऑर मस्तिषक के सम्बधित सभि व्यधिओको मीटा ने के लिये। 
  4. मन और मस्तिषक की शांती मीलती है। 
  5. ब्रम्हानंद की प्राप्ती करने के लीये। 
  6. मन और मस्तिषक की एकाग्रता बढाने के लिये। 

भ्रामरी प्राणायाम

भ्रामरी प्राणायाम

सुखासन,सिद्धासन,पद्मासन,वज्रासन में बैठें। दोनो अंगुठोसे कान पुरी तरह बन्द करके, दो उंगलीओको माथे पे रख के, छः उंगलीया दोनो आँखो पर रख दे| और लंबी सास लेके कण्ठ से भवरें जैसा (म……) आवाज निकालना है|

लाभ

  1. पॉझीटीव्ह एनर्जी तैयार करता है|
  2. सायकीक पेंशनट्स को फायदा होता है|
  3. मायग्रेन पेन, डीप्रेशन,ऑर मस्तिषक के सम्बधित सभि व्यधिओको मीटा ने के लिये|
  4. मन और मस्तिषक की शांती मीलती है|
  5. ब्रम्हानंद की प्राप्ती करने के लीये|
  6. मन और मस्तिषक की एकाग्रता बढाने के लिये|

महोदय, मैने पिछले पांच वर्षो के निरंतर अभ्यास के बाद यह निष्कर्ष निकला है की :- अनुलोम विलोम प्राणायाम में साँस लेने की शुरुआत यदि दायीं नासिका से करते हुए अंत में दाई नासिका से साँस छोड़ा जाये तो मन में क्रोध तथा चिडचिडापन रहता है! तथा इसके विपरीत यदि साँस लेने की शुरुआत बायीं नासिका से करते हुए अंत में बायीं नासिका से ही साँस छोड़ा जाता है तो मन शांत रहता है ! लेकिन आदरनीय विद्वानों द्वारा हर बार साँस लेने की शुरुआत दाई नासिका द्वारा ही बताई जाती ह ! क्रप्या सपष्ट करें.! my e mail id id prsnlart@gmail.com & prsnlart@ymail.com

स्त्रोत : विकीपीडिया

अनुलोम-विलोम प्राणायाम

सुखासन,सिद्धासन,पद्मासन,वज्रासन में बैठें। शुरुवात और अन्त भी हमेशा बाये नथुने(नोस्टील) से ही करनी है, नाक का दाया नथुना बंद करें व बाये से लंबी सांस लें, फिर बाये को बंद करके, दाया वाले से लंबी सांस छोडें...अब दाया से लंबी सांस लें व बाये वाले से छोडें...याने यह दाया-दाया बाया-बाया यह क्रम रखना, यह प्रक्रिया १०-१५ मिनट तक दुहराएं| सास लेते समय अपना ध्यान दोनो आँखो के बीच मे स्थित आज्ञा चक्र पर ध्यान एकत्रित करना चाहिए| और मन ही मन मे सांस लेते समय ओउम-ओउम का जाप करते रहना चाहिए|हमारे शरीर की ७२, ७२, १०, २१० सुक्ष्मादी सुक्ष्म नाडी शुद्ध हो जाती है| बायी नाडी को चन्द्र( इडा, गन्गा) नाडी, और बायी नाडी को सुर्य ( पीन्गला, यमुना ) नाडी केहते है| चन्द्र नाडी से थण्डी हवा अन्दर जती है, और सुर्य नाडी से गरम नाडी हवा अन्दर जती है| थण्डी और गरम हवा के उपयोग से हमारे शरीर का तापमान संतुलित रेहता है| इससे हमारी रोग-प्रतिकारक शक्ती बढ जाती है|

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। शुरुवात और अन्त भी हमेशा बाये नथुने(नोस्टील) से ही करनी है, नाक का दाया नथुना बंद करें व बाये से लंबी सांस लें, फिर बाये को बंद करके, दाया वाले से लंबी सांस छोडें...अब दाया से लंबी सांस लें व बाये वाले से छोडें...याने यह दाया-दाया बाया-बाया यह क्रम रखना, यह प्रक्रिया १०-१५ मिनट तक दुहराएं| सास लेते समय अपना ध्यान दोनो आँखो के बीच मे स्थित आज्ञा चक्र पर ध्यान एकत्रित करना चाहिए| और मन ही मन मे सांस लेते समय ओउम-ओउम का जाप करते रहना चाहिए|हमारे शरीर की ७२,७२,१०,२१० सुक्ष्मादी सुक्ष्म नाडी शुद्ध हो जाती है| बायी नाडी को चन्द्र( इडा, गन्गा ) नाडी,और दायी नाडी को सुर्य (पीन्गला, यमुना) नाडी केहते है| चन्द्र नाडी से थण्डी हवा अन्दर जती है, और सुर्य नाडी से गरम नाडी हवा अन्दर जती है|थण्डी और गरम हवा के उपयोग से हमारे शरीर का तापमान संतुलित रेहता है| इससे हमारी रोग-प्रतिकारक शक्ती बढ जाती है|

=== लाभ===
  1. हमारे शरीर की ७२,७२,१०,२१० सुक्ष्मादी सुक्ष्म नाडी शुद्ध हो जाती है|
  2. हार्ट की ब्लाँकेज खुल जाते है|
  3. हाय,लो दोन्हो रक्त चाप ठिक हो जायेंगे|
  4. आर्थराटीस,रोमेटोर आर्थराटीस,कार्टीलेज घीसना ऐसी बीमारीओंको ठीक हो जाती है|
  5. टेढे लीगामेंटस सीधे हो जायेंगे|
  6. व्हेरीकोज व्हेनस ठीक हो जाती है|
  7. कोलेस्टाँल,टाँक्सीनस,आँस्कीडण्टस इसके जैसे विजतीय पदार्थ शरीर के बहार नीकल जाते है|
  8. सायकीक पेंशनट्स को फायदा होता है|
  9. कीडनी नँचरली स्वछ होती है, डायलेसीस करने की जरुरत नही पडती|
  10. सबसे बडा खतरनाक कँन्सर तक ठीक हो जाता है|
  11. सभी प्रकारकी अँलार्जीयाँ मीट जाती है|
  12. मेमरी बढाने की लीये|
  13. सर्दी, खाँसी, नाक, गला ठीक हो जाता है|
  14. ब्रेन ट्युमर भी ठीक हो जाता है|
  15. सभी प्रकार के चर्म समस्या मीट जाती है|
  16. मस्तिषक के सम्बधित सभि व्याधिओको मीटा ने के लिये|
  17. पर्किनसन,प्यारालेसिस,लुलापन इत्यादी स्नयुओ के सम्बधित सभि व्याधिओको मीटा ने के लिये|
  18. सायनस की व्याधि मीट जाती है|
  19. डायबीटीस पुरी तरह मीट जाती है|
  20. टाँन्सीलस की व्याधि मीट जाती है|

जानिए कपालभाती प्राणायाम योग

मस्तिष्क के अग्र भाग को कपाल कहते हैं और भाती का अर्थ ज्योति होता है। कपालभाती प्राणायाम को हठयोग के षट्कर्म क्रियाओं के अंतर्गत लिया गया है। ये क्रियाएं हैं:-
1.त्राटक 2.नेती. 3.कपालभाती 4.धौती 5.बस्ती 6.नौली। आसनों में सूर्य नमस्कार, प्राणायामों में कपालभाती और ध्यान में ‍साक्षी ध्यान का महत्वपूर्ण स्थान है।

कपालभाती प्राणायाम को हठयोग में शामिल किया गया है। प्राणायामों में यह सबसे कारगर प्राणायाम माना जाता है। यह तेजी से की जाने वाली रेचक प्रक्रिया है। कपालभाती और भस्त्रिका प्राणायाम में अधिक अंतर नहीं है। भस्त्रिका में श्वांस लेना और छोड़ना तेजी से जारी रहता है, जबकि कपालभाती में सिर्फ श्वास को छोड़ने पर ही जोर रहता है।

विधि : सिद्धासन, पद्मासन या वज्रासन में बैठकर सांसों को बाहर छोड़ने की क्रिया करें। सांसों को बाहर छोड़ने या फेंकते समय पेट को अंदर की ओर धक्का देना है। ध्यान रखें कि श्वास लेना नहीं है क्योंकि उक्त क्रिया में श्वास स्वत: ही अंदर चली जाती है।

लाभ : यह प्राणायाम आपके चेहरे की झुर्रियां और आंखों के नीचे का कालापन हटाकर चेहरे की चमक बढ़ाता है। दांतों और बालों के सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं। शरीर की चरबी कम होती है। कब्ज, गैस, एसिडिटी की समस्या में लाभदायक है। शरीर और मन के सभी प्रकार के नकारात्मक तत्व और विचार मिट जाते हैं।
- (वेबदुनिया डेस्क)

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कपालभाति प्राणायाम

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। और सांस को बाहर फेंकते समय पेट को अन्दर की तरफ धक्का देना है, इसमें सिर्फ सांस को छोडते रेहना है। दो सांसो के बीच अपने आप सांस अन्दर चली जायेगी, जान-बूझ के सांस को अन्दर नहीं लेना है। कपाल कहते हैं, मस्तिष्क के अग्र भाग को, भाती कहते हैं, ज्योति को, कान्ति को, तेज को; कपालभाती प्राणायाम करने लगातार करने से चेहरे का लावण्य बढाता है। कपालभाती प्राणायाम धरती की सन्जीवनि कहलाता है। कपालभाती प्राणायाम करते समय मूलाधार चक्र पे ध्यान केन्द्रीत करना है। इससे मूलधार चक्र जाग्रत हो के कुन्ड्लीनि शक्ति जाग्रत होने में मदद होती है। कपालभाती प्राणायाम करते समय ऐसा सोचना है की, हमारे शरीर के सारे नेगेटिव तत्व शरीर से बाहर जा रहे है। खाना मिले ना मिले मगर रोज कम से कम पांच मिनिट कपालभाती प्राणायाम करना ही है, यह दृढ संकल्प करना है।

लाभ
  1. बालो की सारी समस्याओँ का समाधान प्राप्त होता है। 
  2. चेहरे की झुरीयाँ, आखो के निचे के डार्क सर्कल मिट जयेंगे। 
  3. थायराँइड की समस्या मिट जाती है। 
  4. सभी प्रकारके चर्म समस्या मिट जाती है। 
  5. आखो की सभी प्रकारकी समस्या मिट जाती है, और आखो की रोशनी लौट आती है। 
  6. दातों की सभी प्रकारकी समस्या मिट जाती है, और दातों की खतरनाक पायरीया जैसी बीमारी भी ठीक हो जाती है। 
  7. कपालभाती प्राणायाम से शरीर की बढी चर्बी घटती है, यह इस प्राणायाम का सबसे बडा फायदा है। 
  8. कब्ज, सीडिटी, गँस्टीक जैसी पेट की सभी समस्याएँ मिट जाती हैं। 
  9. युट्रस(महीलाओ) की सभी समस्याओँ का समाधान होता है। 
  10. डायबिटीस संपूर्णतया ठीक होता है। 
  11. कोलेस्ट्रोल को घटाने में भी सहायक है। 
  12. सभी प्रकार की अँलार्जीयाँ मिट जाती है। 
  13. सबसे खतरनाक कँन्सर रोग तक ठीक हो जाता है।
  14. शरीर में स्वतः हिमोग्लोबिन तैयार होता है। 
  15. शरीर मे स्वतः कँल्शीयम तैयार होता है। 
  16. किडनी स्वतः स्वच्छ होती है, डायलेसिस करने की जरुरत नहीं पडती। 
स्त्रोत : विकीपीडिया

चमत्कारिक है भस्त्रिका प्राणायाम योग

भस्त्रिका का शाब्दिक अर्थ है धौंकनी अर्थात एक ऐसा प्राणायाम जिसमें लोहार की धौंकनी की तरह आवाज करते हुए वेगपूर्वक शुद्ध प्राणवायु को अन्दर ले जाते हैं और अशुद्ध वायु को बाहर फेंकते हैं।

प्राणायाम जीवन का रहस्य है। श्वासों के आवागमन पर ही हमारा जीवन निर्भर है और ऑक्सीजन की अपर्याप्त मात्रा से रोग और शोक उत्पन्न होते हैं। प्रदूषण भरे महौल और चिंता से हमारी श्वासों की गति अपना स्वाभाविक रूप खो ही देती है, जिसके कारण प्राणवायु संकट काल में हमारा साथ नहीं दे पाती।

विधि : सिद्धासन या सुखासन में बैठकर कमर, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए शरीर और मन को स्थिर रखें। आँखें बंद कर दें। फिर तेज गति से श्वास लें और तेज गति से ही श्वास बाहर निकालें। श्वास लेते समय पेट फूलना चाहिए और श्वास छोड़ते समय पेट पिचकना चाहिए। इससे नाभि स्थल पर दबाव पड़ता है।

इस प्राणायाम को करते समय श्वास की गति पहले धीरे रखें, अर्थात दो सेकंड में एक श्वास भरना और श्वास छोड़ना। फिर मध्यम गति से श्वास भरें और छोड़ें, अर्थात एक सेकंड में एक श्वास भरना और श्वास छोड़ना। फिर श्वास की गति तेज कर दें अर्थात एक सेकंड में दो बार श्वास भरना और श्वास निकालना। श्वास लेते और छोड़ते समय एक जैसी गति बनाकर रखें।

वापस सामान्य अवस्था में आने के लिए श्वास की गति धीरे-धीरे कम करते जाएँ और अंत में एक गहरी श्वास लेकर फिर श्वास निकालते हुए पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें। इसके बाद योगाचार्य पाँच बार कपालभाती प्राणायाम करने की सलाह देते हैं।

सावधानी : भस्त्रिका प्राणायाम करने से पहले नाक बिल्कुल साफ कर लें। भ्रस्त्रिका प्राणायाम प्रात: खुली और साफ हवा में करना चाहिए। क्षमता से ज्यादा इस प्राणायाम को नहीं करना चाहिए। दिन में सिर्फ एक बार ही यह प्राणायाम करें। प्राणायाम करते समय शरीर को न झटका दें और ना ही किसी तरह से शरीर हिलाएँ। श्वास लेने और श्वास छोड़ने का समय बराबर रखें।

नए अभ्यासी शुरू में कम से कम दस बार श्वास छोड़ तथा ले सकते हैं। जिनको तेज श्वास लेने में परेशानी या कुछ समस्या आती है तो प्रारंभ में श्वास मंद-मंद लें। ध्यान रहे कि यह प्राणायाम दोनों नासिका छिद्रों के साथ संपन्न होता है। श्वास लेने और छोड़ने को एक चक्र माना जाएगा तो एक बार में लगभग 25 चक्र कर सकते हैं।

उक्त प्राणायाम को करने के बाद श्वासों की गति को पुन: सामान्य करने के लिए अनुलोम-विलोम के साथ आंतरिक और बाहरी कुंभक करें या फिर कपालभाती पाँच बार अवश्य कर लें।

चेतावनी : उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, हार्निया, दमा, टीबी, अल्सर, पथरी, मिर्गी, स्ट्रोक से ग्रस्त व्यक्ति तथा गर्भवती महिलाएँ इसका अभ्यास न करें। फेफड़ें, गला, हृदय या पेट में किसी भी प्रकार की समस्या हो, नाक बंद हो या साइनस की समस्या हो या फिर नाक की हड्डी बढ़ी हो तो चिकित्सक से सलाह लेकर ही यह प्रणायाम करना या नहीं करना चाहिए। अभ्यास करते समय अगर चक्कर आने लगें, घबराहट हो, ज्यादा पसीना आए या उल्टी जैसा मन करे तो प्राणायाम करना रोककर आराम पूर्ण स्थिति में लेट जाएँ।

लाभ : इस प्राणायाम से शरीर को प्राणवायु अधिक मात्रा में मिलती है, जिसके कारण यह शरीर के सभी अंगों से दूषित पदार्थों को दूर करता है। तेज गति से श्वास लेने और छोड़ने के क्रम में हम ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन लेते हैं और कॉर्बन डॉयऑक्साइड छोड़ते हैं जो फेफड़ों की कार्य क्षमता को बढ़ाता है और हृदय में रक्त नलिकाओं को भी शुद्ध व मजबूत बनाए रखता है। भस्त्रिका प्राणायाम करते समय हमारा डायाफ्राम तेजी से काम करता है, जिससे पेट के अंग मजबूत होकर सुचारु रूप से कार्य करते हैं और हमारी पाचन शक्ति भी बढ़ती है।

मस्तिष्क से संबंधित सभी विकारों को मिटाने के लिए भी यह लाभदायक है। आँख, कान और नाक के स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी यह प्राणायाम लाभदाय है। वात, पित्त और कफ के दोष दूर होते हैं तथा पाचन संस्थान, लीवर और किडनी की अच्छे से एक्सरसाइज हो जाती है। मोटापा, दमा, टीबी और श्वासों के रोग दूर हो जाते हैं। स्नायुओं से संबंधित सभी रोगों में यह लाभदायक माना गया है।
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मोटापा दूर भगाता है भस्त्रिका प्राणायाम

मोटापा आज जन समस्या हो गई है, जिससे कई बीमारियां अपने आप शरीर को घेर लेती है। बिना दवा और टेंशन लिये अगर नियमित रूप से भस्त्रिका प्राणायाम करें तो मोटापे से हमेशा के लिए निजात पा सकते हैं। इस प्राणायाम से शरीर को प्राण वायु अधिक मात्रा में मिलती है। उसी प्रकार कार्बन डाई आक्साइड शरीर से बाहर निकलती है, जिससे रक्त की सफाई होती है। शरीर के सभी अंगों में रक्त का संचार भांति-भांति होता है। दमा, टीवी और सांसों के रोग दूर हो जाते हैं। फेफड़ों को बल मिलता है। स्नायुमंडल सबल हो जाते हैं। वात, पित्त और कफ के दोष दूर होते हैं। हमारे पाचन संस्थान, लीवर और किडनी की मसाज होती है। भस्त्रिका प्राणायाम करने से पहले दो गिलास जल अवश्य पी लें। फिर पदमासन या फिर सुखासन में बैठ जाएं। कमर, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए शरीर और मन को स्थिर करें। इसके बाद बिना शरीर को हिलाए, दोनों नाक छिद्रों से आवाज के साथ श्वांस बाहर निकालें। फिर गति को बढ़ाते हुए जल्दी-जल्दी आवाज के साथ सांस भरे और फिर निकालें। यह क्रिया कहलाती है-भस्त्रिका प्राणायाम। हमारे दोनों हाथ हमारे घुटने पर ज्ञान मुद्रा में रहेंगे। ध्यान रहे श्वांस छोड़ने और लेते वक्त हमारी लय न टूटे। नये अभ्यासी शुरू में कम से कम दस बार श्वांस छोड तथा दस श्वांस लें। आंखें बंद रहेगी। जिन व्यक्तियों को तेज सांसों के साथ किया जाने वाला भस्रिका प्राणायाम करने में परेशानी या कुछ समस्या आती है वे लोग श्वांस मंद-मंद लें, लेकिन श्वांस की गति भस्त्रिका प्राणायाम की भांति प्रबल तेजी के साथ होगी। ध्यान रहे कि यह प्राणायाम भी दोनों नासिका छिद्रों के साथ संपन्न होगा। श्वांस लेने और छोड़ने को एक चक्र माना जाएगा तो एक बार में लगभग 25 चक्र करें। इस प्राणायाम को करने के बाद कपालभांति भी पांच बार अवश्य कर लें। शुरू-शुरू में आराम देकर अभ्यास न करें। ज्यादा लाभ उठाना हो तो योग गुरू के सानिध्य में ही करें। याद रखें कि उच्च रक्तचाप, ह्रदयरोगी, हार्निया, अल्सर, मिर्गी, स्ट्रोक और गर्भवती महिलाएं इसका अभ्यास न करें।

स्त्रोत : समय लाइव १९ मई २००९
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भस्त्रिका प्राणायाम

सुखासन सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। नाक से लंबी सांस फेफड़ों में ही भरे, फिर लंबी सांस फेफड़ों से ही छोडें। सांस लेते और छोडते समय एकसा दबाव बना रहे। हमें हमारी गलतीयाँ सुधारनी है, एक तो हम पूरी सांस नहीं लेते और दूसरा हमारी सांस पेट में चाली जाती है। देखिये हमारे शरीर में साँस लेने के दो रास्ते हैं, एक (नाक, श्वसन नलिका, फेंफड़े) और दूसरा (मुँह्, अन्ननलिका, पेट्)| जैसे फेफड़ों में हवा शुद्ध करने की प्रणाली है, वैसे पेट में नहीं है। उसी के का‍रण हमारे शरीर में आँक्सीजन की कमी मेहसूस होती है और उसी के कारण हमारे शरीर में रोग लड़ते है। उसी गलती को हमें सुधारना है। जैसे की कुछ पाने की खुशि होति है, वैसे ही खुशी हमें प्राणायाम करते समय होनि चाहिये और क्यों न हो सारी जिंदगी का स्वास्थ आपको मिल रहा है। आपके पञ्चविधि प्राण सशक्त हो रहे हैं, हमारे शरीर की सभी प्रणालिया सशक्त हो रही हैं।

लाभ
  1. हमारा हृदय सशक्त बनाने के लिये है। 
  2. हमारे फेफडों को सशक्त बनाने के लिये है। 
  3. मस्तिष्क से सम्बंधित सभी व्याधिओं को मिटाने के लिये भी यह लाभदायक है। 
  4. पर्किनसन, प्यारालेसिस, लुलापन इत्यादि स्नायुओं से सम्बंधित सभी व्याधियों को मिटाने के लिये। 
  5. भगवान से नाता जोड़ने के लिये। 
स्रोत : विकीपीडिया 

प्राणायाम

प्राणायाम दो शब्दों के योग से बना है-(प्राण+आयाम) पहला शब्द "प्राण" है दूसरा "आयाम"। प्राण का अर्थ जो हमें शक्ति देता है या बल देता है। आयाम का अर्थ जानने के लिये इसका संधि विच्छेद करना होगा, क्योंकि यह दो शब्दों के योग(आ+याम) से बना है। इसमें मूल शब्द '"याम" ' है 'आ' उपसर्ग लगा है। याम का अर्थ 'गमन होता है और '"आ" ' उपसर्ग 'उलटा ' के अर्थ में प्रयोग किया गया है अर्थात आयाम का अर्थ उलटा गमन होता है। अतः प्राणायाम में आयाम को 'उलटा गमन के अर्थ में प्रयोग किया गया है। इस प्रकार प्राणायाम का अर्थ 'प्राण का उलटा गमन होता है। यहाँ यह ध्यान देने कि बात है कि प्राणायाम प्राण के उलटा गमन के विशेष क्रिया की संज्ञा है न कि उसका परिणाम। अर्थात प्राणायाम शब्द से प्राण के विशेष क्रिया का बोध होना चाहिये। प्राणायाम के बारे में बहुत से ऋषियों ने अपने-अपने ढंग से कहा है, लेकिन सभी के भाव एक ही हैं जैसे पतन्जलि का प्राणायाम सूत्र एवं गीता में जिसमें पतन्जलि का प्राणायाम सूत्र महत्वपूर्ण माना जाता है जो इस प्रकार है-तस्मिन सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद:प्राणायाम॥ इसका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार होगा-श्वास प्रश्वास के गति को अलग करना प्राणायाम है। इस सूत्र के अनुसार प्राणायाम करने के लिये सबसे पहले सूत्र की सम्यक व्याख्या होनी चाहिये, लेकिन पतंजलि के प्राणायाम सूत्र की व्याख्या करने से पहले हमें इस बात का ध्यान देना चाहिये कि पतंजलि ने योग की क्रियाओं एवं उपायें को योगसूत्र नामक पुस्तक में सूत्र रूप से संकलित किया है और सूत्र का अर्थ ही होता है-एक निश्चित नियम जो गणितीय एवं विज्ञान सम्मत हो। यदि सूत्र की सही व्याख्या नहीं हुई तो उत्तर सत्य से दूर एवं परिणाम शून्य होगा। यदि पतंजलि के प्राणायाम सूत्र के अनुसार प्राणायाम करना है तो सबसे पहले उनके प्राणायाम सूत्र तस्मिन सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद:प्राणायाम॥ की सम्यक व्याख्या होनी चाहिये जो शास्त्रानुसार, विज्ञान सम्मत, तार्किक एवं गणितीय हो। इसी व्याख्या के अनुसार क्रिया करना होगा। इसके लिये सूत्र में प्रयुक्त शब्दों का अर्थबोध होना चाहिये तथा उसमें दी गयी गति विच्छेद की विशेष युक्ति को जानना होगा। इसके लिये पतंजलि के प्राणायाम सूत्र मे प्रयुक्त शब्दो का अर्थ बोध होना चाहिये।

प्राणायाम प्राण याने सांस आयाम याने दो सांसो मे दूरी बढ़ाना, श्‍वास और नि:श्‍वास की गति को नियंत्रण कर रोकने व निकालने की क्रिया को कहा जाता है।

श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम के क्रम में आता है। श्वास खींचने के साथ भावना करें कि प्राण शक्ति, श्रेष्ठता श्वास के द्वारा अंदर खींची जा रही है, छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण, दुष्प्रवृत्तियाँ, बुरे विचार प्रश्वास के साथ बाहर निकल रहे हैं । हम सांस लेते है तो सिर्फ़ हवा नही खीचते तो उसके साथ ब्रह्मान्ड की सारी उर्जा को उसमे खींचते है। अब आपको लगेगा की सिर्फ़ सांस खीचने से ऐसा कैसा होगा। हम जो सांस फेफडो मे खीचते है, वो सिर्फ़ सांस नहीं रहती उसमें सारे ब्रम्हाण्ड की सारी उर्जा समायी रहती है। मान लो जो सांस आपके पूरे शरीर को चलाना जनती है, वो आपके शरीर को दुरुस्त करने की भी ताकत रखती है। प्राणायाम निम्न मंत्र (गायत्री महामंत्र) के उच्चारण के साथ किया जाना चाहिये।

ॐ भूः भुवः ॐ स्वः ॐ महः, ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम् ।
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ ।

सावधानियाँ

  1. सबसे पहले तीन बातों की आवश्यकता है, विश्वास, सत्यभावना, दृढ़ता।
  2. प्राणायाम करने से पहले हमारा शरीर अन्दर से और बाहर से शुद्ध होना चाहिए।
  3. बैठने के लिए नीचे अर्थात भूमि पर आसन बिछाना चाहिए।
  4. बैठते समय हमारी रीढ़ की हड्डियाँ एक पंक्ति में अर्थात सीधी होनी चाहिए।
  5. सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन किसी भी आसन में बैठें, मगर जिसमें आप अधिक देर बैठ सकते हैं, उसी आसन में बैठें।
  6. प्राणायाम करते समय हमारे हाथों को ज्ञान या किसी अन्य मुद्रा में होनी चाहिए।
  7. प्राणायाम करते समय हमारे शरीर में कहीं भी किसी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए, यदि तनाव में प्राणायाम करेंगे तो उसका लाभ नहीं मिलेगा।
  8. प्राणायाम करते समय अपनी शक्ति का अतिक्रमण ना करें।
  9. ह्‍र सांस का आना-जाना बिलकुल आराम से होना चाहिए।
  10. जिन लोगों को उच्च रक्त-चाप की शिकायत है, उन्हें अपना रक्त-चाप साधारण होने के बाद धीमी गति से प्राणायाम करना चाहिये।
  11. यदि आँप्रेशन हुआ हो तो, छः महीने बाद ही प्राणायाम का धीरे-धीरे अभ्यास करें।
  12. हर सांस के आने जाने के साथ मन ही मन में ओम् का जाप करने से आपको आध्यात्मिक एवं शारीरिक लाभ मिलेगा और प्राणायाम का लाभ दुगुना होगा।
  13. सांसे लेते समय किसी एक चक्र पर ध्यान केंन्द्रित होना चाहिये, नहीं तो मन कहीं भटक जायेगा, क्योंकि मन बहुत चंचल होता है।
  14. सांसे लेते समय मन ही मन भगवान से प्रार्थना करनी है कि "हमारे शरीर के सारे रोग शरीर से बाहर निकाल दें और हमारे शरीर में सारे ब्रह्मांड की सारी ऊर्जा, ओज,तेजस्विता हमारे शरीर में डाल दें"।
  15. ऐसा नहीं है कि केवल बीमार लोगों को ही प्राणायाम करना चाहिए, यदि बीमार नहीं भी हैं तो सदा निरोगी रहने की प्रार्थना के साथ प्राणायाम करें।
स्त्रोत : मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

बाह्य प्राणायाम

ठुड्डी को गले से लगा दें, पेट के नीचे बन्द लगा दे और साँस बाहर छोडकर पेट को अन्दर रीढ की हड्डी से चिपका दे, थोडी देर साँस बाहर छोडकर रखे। 

अवधि : इसे 2-5 बार करें। इस प्राणायाम से कपालभाति से मिलने वारे सारे फायदे होते हैं, दूसरे शब्दों में यह कपालभाति का पूर्णक है

लाभ : कब्ज, एसीडिटी, गैस्टिक, हर्निया, धातु और पेशाब से संबंधित सभी समस्याएँ मिट जाती हैं।


सावधानी : हाइपरटेन्शन व हृदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों को बाह्य प्राणायाम नहीं करना चाहिए।

बाह्य प्राणायाम- विस्त्रित जानकारी


इस प्राणायाम को करने के लिए आप सिद्धासन में बैठकर (मतलब दोनों पैरों की एडी को एक के ऊपर एक रखें  तथा हाथो को घुटनों पर रखे और हाथो के अंगूठे तथा अंगूठे के पास वाली उंगली को मिलाकर अपने मेरुदण्ड को सीधा करके बैठ जाये) अब श्वास को गहरा अन्दर भरे तथा अब श्वास को पूरी तरह से बाहर निकाल दे और पेट कि नाभि को मेरुदंड से मिलाने का प्रयत्न करे। क्षमता अनुसार इस स्थिति में रुके तथा फिर अपनी पूर्व स्थिति में आजावे। सांस को पूरी तरह बाहर निकालने के बाद सांस बाहर ही रोके रखने के बाद तीन बन्ध लगाते है।
1) जालंधर बन्ध :-गले को पूरा सिकुड के ठोडी को छाती से सटा कर रखना है। 
2) उड़ड्यान बन्ध :-पेट को पूरी तरह अन्दर पीठ की तरफ खीचना है। 
3) मूल बन्ध :-हमारी मल विसर्जन करने की जगह (गुदा) को पूरी तरह ऊपर की तरफ खींचना है। 

अवधि : इसे 2-5 बार करे। आप इसे इच्छा अनुसार दस से पन्द्रह मिनट तक भी कर सकते हें। 

लाभ :
  1. कब्ज, एसीडिटी, गैस्टिक, जैसी पेट की सभी समस्याएँ मिट जाती हैं। 
  2. हर्निया पूरी तरह ठीक हो जाता है। 
  3. यह आपकी डायबिटीज को दूर करता हें तथा उदर और पेन्क्रियास को ठीक रखता हें। 
  4. धातु और पेशाब से संबंधित सभी समस्याएँ मिट जाती हैं। 
  5. मन की एकाग्रता बढती है। 
  6. व्यंधत्व (संतान हीनता) से छुट्कारा मिलने में भी सहायक है।
सावधानियाँ :
  1. ह्दयरोगी तथा उच्च रक्त चाप वाले व्यक्ति इसे न करे। 
  2. मासिक धर्म के समय महिलाये इस प्राणायाम को ना करे ।
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बाह्य प्राणायाम

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। सांस को पूरी तरह बाहर निकालने के बाद सांस बाहर ही रोके रखने के बाद तीन बन्ध लगाते है। 

(1) जालंधर बन्ध :-गले को पूरा सिकुड के ठोडी को छाती से सटा कर रखना है। 
(2) उड़ड्यान बन्ध :-पेट को पूरी तरह अन्दर पीठ की तरफ खीचना है। 
(3) मूल बन्ध :-हमारी मल विसर्जन करने की जगह को पूरी तरह ऊपर की तरफ खींचना है। 

लाभ
  1. कब्ज, अँसीडीटी,गँसस्टीक, जैसी पेट की सभी समस्याएँ मिट जाती हैं। 
  2. हर्निया पूरी तरह ठीक हो जाता है। 
  3. धातु,और पेशाब से संबंधित सभी समस्याएँ मिट जाती हैं। 
  4. मन की एकाग्रता बढती है। 
  5. व्यंधत्व (संतान हीनता) से छुट्कारा मिलने में भी सहायक है ।
स्त्रोत : विकीपीडिया