Thursday, May 1, 2014

प्राणायाम

प्राणायाम दो शब्दों के योग से बना है-(प्राण+आयाम) पहला शब्द "प्राण" है दूसरा "आयाम"। प्राण का अर्थ जो हमें शक्ति देता है या बल देता है। आयाम का अर्थ जानने के लिये इसका संधि विच्छेद करना होगा, क्योंकि यह दो शब्दों के योग(आ+याम) से बना है। इसमें मूल शब्द '"याम" ' है 'आ' उपसर्ग लगा है। याम का अर्थ 'गमन होता है और '"आ" ' उपसर्ग 'उलटा ' के अर्थ में प्रयोग किया गया है अर्थात आयाम का अर्थ उलटा गमन होता है। अतः प्राणायाम में आयाम को 'उलटा गमन के अर्थ में प्रयोग किया गया है। इस प्रकार प्राणायाम का अर्थ 'प्राण का उलटा गमन होता है। यहाँ यह ध्यान देने कि बात है कि प्राणायाम प्राण के उलटा गमन के विशेष क्रिया की संज्ञा है न कि उसका परिणाम। अर्थात प्राणायाम शब्द से प्राण के विशेष क्रिया का बोध होना चाहिये। प्राणायाम के बारे में बहुत से ऋषियों ने अपने-अपने ढंग से कहा है, लेकिन सभी के भाव एक ही हैं जैसे पतन्जलि का प्राणायाम सूत्र एवं गीता में जिसमें पतन्जलि का प्राणायाम सूत्र महत्वपूर्ण माना जाता है जो इस प्रकार है-तस्मिन सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद:प्राणायाम॥ इसका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार होगा-श्वास प्रश्वास के गति को अलग करना प्राणायाम है। इस सूत्र के अनुसार प्राणायाम करने के लिये सबसे पहले सूत्र की सम्यक व्याख्या होनी चाहिये, लेकिन पतंजलि के प्राणायाम सूत्र की व्याख्या करने से पहले हमें इस बात का ध्यान देना चाहिये कि पतंजलि ने योग की क्रियाओं एवं उपायें को योगसूत्र नामक पुस्तक में सूत्र रूप से संकलित किया है और सूत्र का अर्थ ही होता है-एक निश्चित नियम जो गणितीय एवं विज्ञान सम्मत हो। यदि सूत्र की सही व्याख्या नहीं हुई तो उत्तर सत्य से दूर एवं परिणाम शून्य होगा। यदि पतंजलि के प्राणायाम सूत्र के अनुसार प्राणायाम करना है तो सबसे पहले उनके प्राणायाम सूत्र तस्मिन सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद:प्राणायाम॥ की सम्यक व्याख्या होनी चाहिये जो शास्त्रानुसार, विज्ञान सम्मत, तार्किक एवं गणितीय हो। इसी व्याख्या के अनुसार क्रिया करना होगा। इसके लिये सूत्र में प्रयुक्त शब्दों का अर्थबोध होना चाहिये तथा उसमें दी गयी गति विच्छेद की विशेष युक्ति को जानना होगा। इसके लिये पतंजलि के प्राणायाम सूत्र मे प्रयुक्त शब्दो का अर्थ बोध होना चाहिये।

प्राणायाम प्राण याने सांस आयाम याने दो सांसो मे दूरी बढ़ाना, श्‍वास और नि:श्‍वास की गति को नियंत्रण कर रोकने व निकालने की क्रिया को कहा जाता है।

श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम के क्रम में आता है। श्वास खींचने के साथ भावना करें कि प्राण शक्ति, श्रेष्ठता श्वास के द्वारा अंदर खींची जा रही है, छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण, दुष्प्रवृत्तियाँ, बुरे विचार प्रश्वास के साथ बाहर निकल रहे हैं । हम सांस लेते है तो सिर्फ़ हवा नही खीचते तो उसके साथ ब्रह्मान्ड की सारी उर्जा को उसमे खींचते है। अब आपको लगेगा की सिर्फ़ सांस खीचने से ऐसा कैसा होगा। हम जो सांस फेफडो मे खीचते है, वो सिर्फ़ सांस नहीं रहती उसमें सारे ब्रम्हाण्ड की सारी उर्जा समायी रहती है। मान लो जो सांस आपके पूरे शरीर को चलाना जनती है, वो आपके शरीर को दुरुस्त करने की भी ताकत रखती है। प्राणायाम निम्न मंत्र (गायत्री महामंत्र) के उच्चारण के साथ किया जाना चाहिये।

ॐ भूः भुवः ॐ स्वः ॐ महः, ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम् ।
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ ।

सावधानियाँ

  1. सबसे पहले तीन बातों की आवश्यकता है, विश्वास, सत्यभावना, दृढ़ता।
  2. प्राणायाम करने से पहले हमारा शरीर अन्दर से और बाहर से शुद्ध होना चाहिए।
  3. बैठने के लिए नीचे अर्थात भूमि पर आसन बिछाना चाहिए।
  4. बैठते समय हमारी रीढ़ की हड्डियाँ एक पंक्ति में अर्थात सीधी होनी चाहिए।
  5. सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन किसी भी आसन में बैठें, मगर जिसमें आप अधिक देर बैठ सकते हैं, उसी आसन में बैठें।
  6. प्राणायाम करते समय हमारे हाथों को ज्ञान या किसी अन्य मुद्रा में होनी चाहिए।
  7. प्राणायाम करते समय हमारे शरीर में कहीं भी किसी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए, यदि तनाव में प्राणायाम करेंगे तो उसका लाभ नहीं मिलेगा।
  8. प्राणायाम करते समय अपनी शक्ति का अतिक्रमण ना करें।
  9. ह्‍र सांस का आना-जाना बिलकुल आराम से होना चाहिए।
  10. जिन लोगों को उच्च रक्त-चाप की शिकायत है, उन्हें अपना रक्त-चाप साधारण होने के बाद धीमी गति से प्राणायाम करना चाहिये।
  11. यदि आँप्रेशन हुआ हो तो, छः महीने बाद ही प्राणायाम का धीरे-धीरे अभ्यास करें।
  12. हर सांस के आने जाने के साथ मन ही मन में ओम् का जाप करने से आपको आध्यात्मिक एवं शारीरिक लाभ मिलेगा और प्राणायाम का लाभ दुगुना होगा।
  13. सांसे लेते समय किसी एक चक्र पर ध्यान केंन्द्रित होना चाहिये, नहीं तो मन कहीं भटक जायेगा, क्योंकि मन बहुत चंचल होता है।
  14. सांसे लेते समय मन ही मन भगवान से प्रार्थना करनी है कि "हमारे शरीर के सारे रोग शरीर से बाहर निकाल दें और हमारे शरीर में सारे ब्रह्मांड की सारी ऊर्जा, ओज,तेजस्विता हमारे शरीर में डाल दें"।
  15. ऐसा नहीं है कि केवल बीमार लोगों को ही प्राणायाम करना चाहिए, यदि बीमार नहीं भी हैं तो सदा निरोगी रहने की प्रार्थना के साथ प्राणायाम करें।
स्त्रोत : मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

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