Thursday, May 1, 2014

चमत्कारिक है भस्त्रिका प्राणायाम योग

भस्त्रिका का शाब्दिक अर्थ है धौंकनी अर्थात एक ऐसा प्राणायाम जिसमें लोहार की धौंकनी की तरह आवाज करते हुए वेगपूर्वक शुद्ध प्राणवायु को अन्दर ले जाते हैं और अशुद्ध वायु को बाहर फेंकते हैं।

प्राणायाम जीवन का रहस्य है। श्वासों के आवागमन पर ही हमारा जीवन निर्भर है और ऑक्सीजन की अपर्याप्त मात्रा से रोग और शोक उत्पन्न होते हैं। प्रदूषण भरे महौल और चिंता से हमारी श्वासों की गति अपना स्वाभाविक रूप खो ही देती है, जिसके कारण प्राणवायु संकट काल में हमारा साथ नहीं दे पाती।

विधि : सिद्धासन या सुखासन में बैठकर कमर, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए शरीर और मन को स्थिर रखें। आँखें बंद कर दें। फिर तेज गति से श्वास लें और तेज गति से ही श्वास बाहर निकालें। श्वास लेते समय पेट फूलना चाहिए और श्वास छोड़ते समय पेट पिचकना चाहिए। इससे नाभि स्थल पर दबाव पड़ता है।

इस प्राणायाम को करते समय श्वास की गति पहले धीरे रखें, अर्थात दो सेकंड में एक श्वास भरना और श्वास छोड़ना। फिर मध्यम गति से श्वास भरें और छोड़ें, अर्थात एक सेकंड में एक श्वास भरना और श्वास छोड़ना। फिर श्वास की गति तेज कर दें अर्थात एक सेकंड में दो बार श्वास भरना और श्वास निकालना। श्वास लेते और छोड़ते समय एक जैसी गति बनाकर रखें।

वापस सामान्य अवस्था में आने के लिए श्वास की गति धीरे-धीरे कम करते जाएँ और अंत में एक गहरी श्वास लेकर फिर श्वास निकालते हुए पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें। इसके बाद योगाचार्य पाँच बार कपालभाती प्राणायाम करने की सलाह देते हैं।

सावधानी : भस्त्रिका प्राणायाम करने से पहले नाक बिल्कुल साफ कर लें। भ्रस्त्रिका प्राणायाम प्रात: खुली और साफ हवा में करना चाहिए। क्षमता से ज्यादा इस प्राणायाम को नहीं करना चाहिए। दिन में सिर्फ एक बार ही यह प्राणायाम करें। प्राणायाम करते समय शरीर को न झटका दें और ना ही किसी तरह से शरीर हिलाएँ। श्वास लेने और श्वास छोड़ने का समय बराबर रखें।

नए अभ्यासी शुरू में कम से कम दस बार श्वास छोड़ तथा ले सकते हैं। जिनको तेज श्वास लेने में परेशानी या कुछ समस्या आती है तो प्रारंभ में श्वास मंद-मंद लें। ध्यान रहे कि यह प्राणायाम दोनों नासिका छिद्रों के साथ संपन्न होता है। श्वास लेने और छोड़ने को एक चक्र माना जाएगा तो एक बार में लगभग 25 चक्र कर सकते हैं।

उक्त प्राणायाम को करने के बाद श्वासों की गति को पुन: सामान्य करने के लिए अनुलोम-विलोम के साथ आंतरिक और बाहरी कुंभक करें या फिर कपालभाती पाँच बार अवश्य कर लें।

चेतावनी : उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, हार्निया, दमा, टीबी, अल्सर, पथरी, मिर्गी, स्ट्रोक से ग्रस्त व्यक्ति तथा गर्भवती महिलाएँ इसका अभ्यास न करें। फेफड़ें, गला, हृदय या पेट में किसी भी प्रकार की समस्या हो, नाक बंद हो या साइनस की समस्या हो या फिर नाक की हड्डी बढ़ी हो तो चिकित्सक से सलाह लेकर ही यह प्रणायाम करना या नहीं करना चाहिए। अभ्यास करते समय अगर चक्कर आने लगें, घबराहट हो, ज्यादा पसीना आए या उल्टी जैसा मन करे तो प्राणायाम करना रोककर आराम पूर्ण स्थिति में लेट जाएँ।

लाभ : इस प्राणायाम से शरीर को प्राणवायु अधिक मात्रा में मिलती है, जिसके कारण यह शरीर के सभी अंगों से दूषित पदार्थों को दूर करता है। तेज गति से श्वास लेने और छोड़ने के क्रम में हम ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन लेते हैं और कॉर्बन डॉयऑक्साइड छोड़ते हैं जो फेफड़ों की कार्य क्षमता को बढ़ाता है और हृदय में रक्त नलिकाओं को भी शुद्ध व मजबूत बनाए रखता है। भस्त्रिका प्राणायाम करते समय हमारा डायाफ्राम तेजी से काम करता है, जिससे पेट के अंग मजबूत होकर सुचारु रूप से कार्य करते हैं और हमारी पाचन शक्ति भी बढ़ती है।

मस्तिष्क से संबंधित सभी विकारों को मिटाने के लिए भी यह लाभदायक है। आँख, कान और नाक के स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी यह प्राणायाम लाभदाय है। वात, पित्त और कफ के दोष दूर होते हैं तथा पाचन संस्थान, लीवर और किडनी की अच्छे से एक्सरसाइज हो जाती है। मोटापा, दमा, टीबी और श्वासों के रोग दूर हो जाते हैं। स्नायुओं से संबंधित सभी रोगों में यह लाभदायक माना गया है।
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मोटापा दूर भगाता है भस्त्रिका प्राणायाम

मोटापा आज जन समस्या हो गई है, जिससे कई बीमारियां अपने आप शरीर को घेर लेती है। बिना दवा और टेंशन लिये अगर नियमित रूप से भस्त्रिका प्राणायाम करें तो मोटापे से हमेशा के लिए निजात पा सकते हैं। इस प्राणायाम से शरीर को प्राण वायु अधिक मात्रा में मिलती है। उसी प्रकार कार्बन डाई आक्साइड शरीर से बाहर निकलती है, जिससे रक्त की सफाई होती है। शरीर के सभी अंगों में रक्त का संचार भांति-भांति होता है। दमा, टीवी और सांसों के रोग दूर हो जाते हैं। फेफड़ों को बल मिलता है। स्नायुमंडल सबल हो जाते हैं। वात, पित्त और कफ के दोष दूर होते हैं। हमारे पाचन संस्थान, लीवर और किडनी की मसाज होती है। भस्त्रिका प्राणायाम करने से पहले दो गिलास जल अवश्य पी लें। फिर पदमासन या फिर सुखासन में बैठ जाएं। कमर, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए शरीर और मन को स्थिर करें। इसके बाद बिना शरीर को हिलाए, दोनों नाक छिद्रों से आवाज के साथ श्वांस बाहर निकालें। फिर गति को बढ़ाते हुए जल्दी-जल्दी आवाज के साथ सांस भरे और फिर निकालें। यह क्रिया कहलाती है-भस्त्रिका प्राणायाम। हमारे दोनों हाथ हमारे घुटने पर ज्ञान मुद्रा में रहेंगे। ध्यान रहे श्वांस छोड़ने और लेते वक्त हमारी लय न टूटे। नये अभ्यासी शुरू में कम से कम दस बार श्वांस छोड तथा दस श्वांस लें। आंखें बंद रहेगी। जिन व्यक्तियों को तेज सांसों के साथ किया जाने वाला भस्रिका प्राणायाम करने में परेशानी या कुछ समस्या आती है वे लोग श्वांस मंद-मंद लें, लेकिन श्वांस की गति भस्त्रिका प्राणायाम की भांति प्रबल तेजी के साथ होगी। ध्यान रहे कि यह प्राणायाम भी दोनों नासिका छिद्रों के साथ संपन्न होगा। श्वांस लेने और छोड़ने को एक चक्र माना जाएगा तो एक बार में लगभग 25 चक्र करें। इस प्राणायाम को करने के बाद कपालभांति भी पांच बार अवश्य कर लें। शुरू-शुरू में आराम देकर अभ्यास न करें। ज्यादा लाभ उठाना हो तो योग गुरू के सानिध्य में ही करें। याद रखें कि उच्च रक्तचाप, ह्रदयरोगी, हार्निया, अल्सर, मिर्गी, स्ट्रोक और गर्भवती महिलाएं इसका अभ्यास न करें।

स्त्रोत : समय लाइव १९ मई २००९
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भस्त्रिका प्राणायाम

सुखासन सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। नाक से लंबी सांस फेफड़ों में ही भरे, फिर लंबी सांस फेफड़ों से ही छोडें। सांस लेते और छोडते समय एकसा दबाव बना रहे। हमें हमारी गलतीयाँ सुधारनी है, एक तो हम पूरी सांस नहीं लेते और दूसरा हमारी सांस पेट में चाली जाती है। देखिये हमारे शरीर में साँस लेने के दो रास्ते हैं, एक (नाक, श्वसन नलिका, फेंफड़े) और दूसरा (मुँह्, अन्ननलिका, पेट्)| जैसे फेफड़ों में हवा शुद्ध करने की प्रणाली है, वैसे पेट में नहीं है। उसी के का‍रण हमारे शरीर में आँक्सीजन की कमी मेहसूस होती है और उसी के कारण हमारे शरीर में रोग लड़ते है। उसी गलती को हमें सुधारना है। जैसे की कुछ पाने की खुशि होति है, वैसे ही खुशी हमें प्राणायाम करते समय होनि चाहिये और क्यों न हो सारी जिंदगी का स्वास्थ आपको मिल रहा है। आपके पञ्चविधि प्राण सशक्त हो रहे हैं, हमारे शरीर की सभी प्रणालिया सशक्त हो रही हैं।

लाभ
  1. हमारा हृदय सशक्त बनाने के लिये है। 
  2. हमारे फेफडों को सशक्त बनाने के लिये है। 
  3. मस्तिष्क से सम्बंधित सभी व्याधिओं को मिटाने के लिये भी यह लाभदायक है। 
  4. पर्किनसन, प्यारालेसिस, लुलापन इत्यादि स्नायुओं से सम्बंधित सभी व्याधियों को मिटाने के लिये। 
  5. भगवान से नाता जोड़ने के लिये। 
स्रोत : विकीपीडिया 

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